आम आदमी को ईश्वर संदेश Devine Massege to the Common Man



         प्रार्थना और सपना – एक स्वचिंतन      

         रात के तीसरे पहर, जब सारा संसार निद्रा में लीन था, एक रहस्यमयी "शीतलता" मुझे जगाने लगी। नींद और जागरण के उस धुंधले क्षण में, एक दिव्य प्रकाश झलका... और उसी में प्रकट हुआ एक स्वप्न... ईश्वर का सन्देश, जो मेरी आत्मा को हमेशा के लिए झकझोर गया।

"हे मानव!"
एक गूंजती हुई दिव्य वाणी मेरे अंतर्मन में प्रतिध्वनित हुई....
"तू प्रतिदिन मुझसे प्रार्थना करता है,... एक ऐसे तेजस्वी बालक की याचना करता है, जो तेरे देश को गौरव की ऊँचाइयों तक ले जाए। परंतु सुन, हे मानव! मैं तो हर दिन तेरे समाज में एक 'सूर्यपुत्र' भेजता हूँ... ऐसा बालक जो ऊर्जा, संभावनाओं और दिव्य प्रतिभा से ओतप्रोत होता है... किन्तु तेरा समाज उसे बचा नहीं पाता।"

मैं स्तब्ध था। वाणी पुनः गूंजी....

"हे मानव! उस बालक के लिए तेरा 'समाज' ही वह प्रथम परीक्षा है, जहाँ वह बालक असफल हो जाता है..."

"शैशव काल में उसे भूख और उपेक्षा का स्वाद चखना पड़ता है..."
"बाल्यकाल में उसे शिक्षा के स्थान पर अराजकता मिलती है..."
"किशोर होते ही तेरे समाज की कुरीतियाँ, नशे और दिशाहीनता उसके मार्ग को अंधकारमय कर देती हैं..."
"और यदि किसी चमत्कार से वह युवावस्था तक पहुँच भी गया, तो अवसरों की कमी उसकी आभा को धीमा कर देती है..."

"फिर भी तू मुझसे प्रश्न करता है कि मैंने ऐसा बालक क्यों नहीं भेजा...?"

अब मेरी आँखें नम थीं। ईश्वर बोले –

"यदि तू सचमुच ऐसा बालक चाहता है, तो पहले अपना समाज बदल। उसके लिए एक ऐसी भूमि तैयार कर, जहाँ वह पनप सके, खिल सके, और देश को नई ऊँचाइयों तक ले जा सके।"

उस दिन की अनुभूति आज भी मेरी आत्मा को आंदोलित करती है। क्या आप और मैं मिलकर उस भूमि को तैयार कर सकते हैं...?

यह लेख “रिश्तों का ताना-बाना” ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है। परिवार, समाज और मन के रिश्तों की बातों के लिए पढ़ते रहें... 👇

 https://manojbhatt63.blogspot.com 

पढ़ने के लिए धन्यवाद...🙏

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता-पिता: बेटा-बेटी दोनों की जिम्मेदारी, पर सम्मान सहित ....

रिटर्न गिफ्ट" की परंपरा बनाम भावनाओं की गरिमा

"पीढ़ियों के लिए सोच से स्वार्थ तक की यात्रा"

" क्षमा ", रिश्तों और समाज का सबसे बड़ा साहस

कल की कथा, आज की व्यथा | Yesterday & Today’s Pain

समाज और परिवार में संवाद का क्षय....

एक गुप्तरोग..., मनोरोग

वृद्ध आश्रम की दीवार पर टंगी एक घड़ी की दास्तान

“संस्कार"...सोच और नजरिए की असली जड़”