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वैश्विक उथल-पुथल के दौर में परिवारों में सामंजस्य की कशमकश... मानसिक स्वास्थ्य, पीढ़ी अंतराल और समाधान

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वैश्विक उथल-पुथल के दौर में पारिवारिक रिश्तों का ताना-बाना साधने की कशमकश         आज का युग वैश्विक अस्थिरता (Global Instability) और सामाजिक तनाव (Social Stress) का है। एक ओर महामारी, युद्ध और आर्थिक असमानता ने मानवता को झकझोरा है, तो वहीं दूसरी ओर परिवार, जो समाज की सबसे मूलभूत इकाई होती है, उसकी आंतरिक एकजुटता (Internal Cohesion) टूटने लगी है।       बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक हर वर्ग आज एक अजीब सी कशमकश से गुजर रहा है। जहाँ पहले परिवार को “सुरक्षित आश्रय” माना जाता था, आज वहीं, अब वही स्थान तनाव, अविश्वास और मतभेद का प्रतीक बन रहा है।       इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे वैश्विक उथल-पुथल का असर सीधे पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है, साथ ही उन रास्तों को तलाशने की कोशिश करेंगे, जिनसे परिवार और समाज एक बार फिर से सामंजस्य (Harmony) और तालमेल (Coordination) की नई दिशा में, एक नए रास्ते पर बढ़ सकें।   वैश्विक संकट और परिवारों पर पड़ने वाला असर मानसिक स्वास्थ्य पर COVID-19 महामारी ने सबसे पहले परिवारों की जड़ों को हिला दिया...

“संस्कार"...सोच और नजरिए की असली जड़”

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"संस्कार"...सोच और रिश्तों की नींव       आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में रिश्ते, सोच और नजरिया बड़ी तेज़ी से बदलते हुए नज़र आते हैं। सगे संबंधी के रिश्ते हों या अपने बचपन की दोस्ती हो, कई बार, एक परिपक्व उम्र के पड़ाव पर पहुंच कर उन रिश्तों के बीच आश्चर्यजनक रूप में बहुत चौड़ी दरार देखने को मिलती है।        जो व्यक्ति बचपन में सरल, स्नेही और अपनेपन से भरा लगता था, बड़ा होकर, उसी का व्यवहार कई बार, एकदम "विपरीत रूप" में सामने आता है और हम चकित हो जाते हैं...       यह परिवर्तन केवल उसके बौद्धिक विकास या शिक्षा के कारण नहीं आता, बल्कि उसकी गहराई में कुछ और ही कारण छिपे होते हैं और वह कारण है " संस्कार "।       किसी इंसान के जीवन में शिक्षा से कहीं अधिक गहरा प्रभाव, उसके " संस्कार " पर निर्भर करता है क्योंकि संस्कार ही वह अदृश्य शक्ति है, जो किसी बच्चे के व्यक्तित्व की नींव रखती है। यह न पाठ्य पुस्तकों से मिलता है, न ही किसी पाठशाला से। यह उसके जन्म काल से बनता है, माता-पिता, परिवार, परिवेश और दिन-प्रतिदिन मिलने वाले अनुभव...