स्क्रीन का नशा


The Screen Addiction 
नई सदी का सबसे ख़ामोश, पर सबसे घातक नशा

        यूं तो मानव समाज में समय के साथ नशे की पहचान भी बदलती रही है। बीते वर्षों में जहां नशे का अर्थ शराब, सिगरेट या अन्य नशीले पदार्थों तक सीमित था, वहीं आज की 21वीं सदी में एक बेहद शांत पर बेहद घातक नशे ने जन्म लिया है। वह है...स्क्रीन का नशा

चेतावनी 

     यह नशा न केवल खतरनाक है, बल्कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बिना शोर-शराबे के, चुपचाप हमारी सोच, जीवनशैली और संबंधों को भीतर से खोखला कर रहा है। 

हर आयु वर्ग पर असर करता है यह ‘नया नशा

     नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो, वह हर आयु और हर वर्ग को बिना किसी सीमा के अपनी गिरफ्त में ले लेता है। उसी तरह ये स्क्रीन का नशा भी आज पूरी दुनिया में लोगो को बड़ी तेजी से प्रभावित कर रहा है। हालांकि इस नशे के शिकार हर व्यक्ति को अपने पीड़ित होने का एहसास हो जाता है फिर भी वह खुद को रोक नहीं पाता और जाने अनजाने वह अपने ही परिवार में इसका प्रसार करना शुरू कर देता है।
      
     शुरुआत होती है शैशवस्था से, जब शिशु के प्रातःकालीन दिनचर्या से लेकर रात सोने तक, उसके ही अपने उसे, स्क्रीन का नशा की खुराक देना शुरू कर देते हैं। धीरे धीरे किशोरावस्था तक उसकी ऊर्जा अब सोशल मीडिया, लाइक्स और वीडियो गेम की आभासी जीतों में बिखर जाती है। फिर युवावस्था आने तक उसका संवाद, उसकी आंखों से नहीं बल्कि स्क्रीन के की बोर्ड से हो रहा होता है।

      फिर एक स्थिति यह आती है कि पूरा परिवार एक ही छत के नीचे रहते हुए भी स्क्रीन की दीवारों के पीछे बंट जाता है। अब आप ये बात आसानी से समझ सकते हैं कि पूरा का पूरा परिवार स्क्रीन के नशे का शिकार हो गया है।

अकेलापन और अवसाद का कारण

      स्क्रीन का नशा, बहुत व्यापक होता है। जो सिर्फ आँखों पर ही असर नहीं डालता, बल्कि मन और मस्तिस्क पर भी पूरी तरह छा जाता है। तकनीकी जुड़ाव ने मानवीय जुड़ाव को पीछे छोड़ दिया है। सामाजिक दूरी को बढ़ा दिया है।
    
       जिसके कारण लोगो के द्वारा स्क्रीन पर बिताया गया समय, सबसे पहले आपस में होने वाले वास्तविक संवाद को खत्म कर देता है। जिसका सीधा असर, आपसी रिश्तों में पड़ने लगा है। और यही वजह है कि स्क्रीन के नशे के कारण हमारी जिंदगी में परस्पर स्पर्श, भाव और संबंधों का जादू कमोवेश कम होता जा रहा है।

      फिर, लगातार विभिन्न प्रकार की डिजिटल सूचना की बौछार, हमारे मस्तिष्क को बुरी तरह थका देता है जिससे मानसिक थकान और चिंता, कब मानसिक अवसाद में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। जिससे होता यह है कि जब भी कभी कोई, स्क्रीन से दूरी की बात करता है तो घर में अत्यंत अप्रिय स्थितियां देखने को मिलती हैं। कभी कभी तो हिंसक स्थितियां भी।

स्क्रीन, वरदान या अभिशाप...? यह चुनाव हमारा है।

       आधुनिक तकनीक को पूरी तरह खारिज करना समाधान नहीं है, क्योंकि उसका सदुपयोग आज के समय में बेहद आवश्यक है, शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना, संचार, सब तकनीक से जुड़े हैं। परंतु जब यही उपयोग "अति-उपयोग" बन जाए, तो वही तकनीक एक धीमा जहर बन जाती है। 

क्या है समाधान...?

    आईए अब इस पर चर्चा करें कि स्क्रीन का नशा धीरे-धीरे कैसे समाप्त किया जाए। कुछ सुझाव, जिन्हें अपना कर हम पुनः सामान्य परिवारिक और सामाजिक जीवन के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।

      सबसे पहले स्व-नियंत्रण विकसित करें और अपने आप को स्क्रीन के नशे से बचाने के लिए दिन में कुछ समय मोबाइल से दूर रहकर प्रकृति से जुड़े, स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें और उस पर दृढ़ रहें। परिवार और दोस्तों के साथ वास्तविक समय बिताएं। ऑफलाइन गतिविधियाँ अपनाएं जैसे पढ़ाई, खेल, संगीत, कला आदि।

जागरूकता ही बचाव है

        यह नशा कानूनों से नहीं, बल्कि स्व-नियंत्रण और सामूहिक जागरूकता से ही थमेगा। हमें समझना होगा कि स्क्रीन हमारे लिए है, हम स्क्रीन के लिए नहीं। आज अगर हम नहीं जगे, तो कल यह नशा हमारी आने वाली पीढ़ियों को न केवल बीमार, बल्कि संवेदनहीन और अकेला बना देगा।

चौंकाने वाले तथ्य ... स्क्रीन का असर
  • भारत में 13–25 वर्ष के युवाओं में 37.9% अवसाद, 33.3% चिंता और 43.7% उच्च तनाव की शिकायत पाई गई, औसतन 7 घंटे रोज़ाना स्क्रीन टाइम के साथ।
  • गुजरात में किए गए अध्ययन में 64.6% किशोर स्मार्टफोन लतग्रस्त पाए गए।
  • कुछ शहरों में 13.5% से 22% युवा उच्च-जोखिम डिजिटल व्यवहार (जैसे अत्यधिक गेमिंग, सोशल मीडिया) में लिप्त हैं।
  • तमिलनाडु में 87% विद्यार्थी ऑनलाइन गेम खेलते हैं, जिनमें से 23% को तनाव या नकारात्मक विचार आते हैं।
  • अमेरिका में जो किशोर रोज़ाना 4 घंटे या ज़्यादा स्क्रीन पर रहते हैं, उनमें 27.1% चिंता और 25.9% अवसाद के लक्षण पाए गए।
     सोचिए, क्या हम अपनी स्क्रीन आदतों पर नियंत्रण रखते हैं, या वे हमें नियंत्रित कर रही हैं...?

अब समय है, खुद जागने का, और दूसरों को जगाने का...🙏

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  यह लेख “रिश्तों का ताना-बाना” ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है।  परिवार, समाज और मन के रिश्तों की बातों के लिए पढ़ते रहें: 👇 https://manojbhatt63.blogspot.com 
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टिप्पणियाँ

  1. आपने आज के समय की बहुत बड़ी समस्याओं में से एक समस्या पे बात उठाई हैं इसे हर व्यक्ति को गंभीरता से सोचना चाहिए।

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    उत्तर
    1. निष्ठा जी बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏 आपने बहुत बारीकी से मेरे इस लेख को पढ़ा और समझा। अच्छा लगा। यह सच है कि अगर हमने इस विषय में आज गंभीरता से विचार नहीं किया तो आने वाले कल, इसके दुष्परिणाम स्वयं के जीवन के साथ-साथ परिवार पर नकारात्मक रूप से पड़ेगा। स्वाभाविक है, फिर समाज और राष्ट्र पर तो पड़ेगा ही। कृपया इसका प्रसार करें।धन्यवाद 🙏

      हटाएं

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