“संस्कार"...सोच और नजरिए की असली जड़”
"संस्कार"...सोच और रिश्तों की नींव
आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में रिश्ते, सोच और नजरिया बड़ी तेज़ी से बदलते हुए नज़र आते हैं। सगे संबंधी के रिश्ते हों या अपने बचपन की दोस्ती हो, कई बार, एक परिपक्व उम्र के पड़ाव पर पहुंच कर उन रिश्तों के बीच आश्चर्यजनक रूप में बहुत चौड़ी दरार देखने को मिलती है।
जो व्यक्ति बचपन में सरल, स्नेही और अपनेपन से भरा लगता था, बड़ा होकर, उसी का व्यवहार कई बार, एकदम "विपरीत रूप" में सामने आता है और हम चकित हो जाते हैं...
यह परिवर्तन केवल उसके बौद्धिक विकास या शिक्षा के कारण नहीं आता, बल्कि उसकी गहराई में कुछ और ही कारण छिपे होते हैं और वह कारण है "संस्कार"।
किसी इंसान के जीवन में शिक्षा से कहीं अधिक गहरा प्रभाव, उसके "संस्कार" पर निर्भर करता है क्योंकि संस्कार ही वह अदृश्य शक्ति है, जो किसी बच्चे के व्यक्तित्व की नींव रखती है। यह न पाठ्य पुस्तकों से मिलता है, न ही किसी पाठशाला से। यह उसके जन्म काल से बनता है, माता-पिता, परिवार, परिवेश और दिन-प्रतिदिन मिलने वाले अनुभवों से बनता है। जिसे हम "संस्कार" कहते हैं।
कोई बच्चा चाहे जितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर ले, किन्तु उसके "संस्कार" सहिष्णु और मूल्य आधारित अगर नहीं हैं, तो उसकी सोच जल्द ही स्वार्थपरक,संबंध-विरोधी और आलोचनात्मक हो सकती है।
हमारा विचार और नजरिया, संस्कार की ही उपज होती है। इसे इस तरह से समझें कि हम जब किसी व्यक्ति से संवाद करते हैं, तो उसके शब्दों, उसके निर्णयों और उसके व्यवहार में कहीं न कहीं उसकी सोच और नजरिया झलकता है। और यह नजरिया आकस्मिक नहीं होता, यह उस ‘संस्कार-तंत्र’ की उपज होता है जो उसके भीतर बचपन से पलता रहा है।
बहुत से लोग सोचते हैं कि समय के साथ नजरिया बदल जाता है, वे लोग भ्रमित हैं, वास्तविकता यह है कि बचपन के जिस संस्कार के बीच उसकी परवरिश हुई है, वह परवरिश ही उसके भविष्य के नजरिए का, सोच का आधार बनती है। इसीलिए किसी के साथ संबंध बनाते समय केवल उसकी डिग्री, नौकरी या बातचीत को न देखें, उसके संस्कारों की पड़ताल करना आवश्यक है।
कई बार हम देखते हैं कि बचपन के मित्र हों या रिश्तेदार, उम्र बढ़ने के साथ, अलग तरह से व्यवहार करने लगते हैं। बचपन में जिनमें अपनापन महसूस होता था, वे बड़े होकर तटस्थ या स्वार्थी लगने लगते हैं।
और तब, सही मायने में उनके संस्कार की असली परीक्षा प्रारंभ होती है। क्योंकि जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में ही संस्कारों की असली परीक्षा होती है। जिनके संस्कार केवल दिखावे या परवरिश के दबाव से बने थे, वे ज़रा सी हवा चलते ही बहक जाते हैं।
इसलिए जब कोई हमारे अनुरूप न सोचता हो, तो उसे तुरंत गलत, दंभी या असंवेदनशील कहना ठीक नहीं बल्कि उसके "संस्कारों" के स्रोत को पहचानना चाहिए।
उपरोक्त तथ्यों पर परिपक्वता के आधार पर इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि भविष्य में तमाम महत्वपूर्ण रिश्ते या घनिष्ठ संबंध बनाते समय सामने वाले के प्रति संस्कार, सोच और नजरिये पर अपना नजरिया बहुत ही स्पष्ट रखें।
समाज में आज कई बार विवाह के बाद रिश्तों में खटास आ जाती है। कारण...? शादी से पहले हमने केवल ‘व्यक्ति’ को जाना, उसके संस्कारों और मूल्यों को नहीं।
किसी के साथ जीवन साझा करने से पहले उसके जीवन-दृष्टिकोण, परिवार की परंपराओं और मूल्यों को समझना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि शादी के बाद जो सामने आता है, वह केवल व्यक्ति नहीं होता, बल्कि उसके संस्कारों का प्रतिरूप होता है।
संस्कार के मायने में सकारात्मकता होती है। संस्कार कभी बुरे नहीं होते, अगर बुरे हैं तो उन्हें संस्कार नहीं कहा जा सकता। विचार, नजरिया और व्यवहार, ये तीनों किसी भी व्यक्ति की आत्मा को परिभाषित करते हैं, और इनकी सबसे मजबूत नींव होती है संस्कार।
इसलिए जब भी आप किसी से संबंध बनाएं, चाहे वह मित्रता हो, रिश्ता हो या विवाह, उसके पहनावे, बातचीत या स्थिति को देखकर नहीं, बल्कि उसके संस्कारों की गहराई को समझकर करें।
जब जीवन आगे बढ़ता है, तो वही संस्कार हर उतार-चढ़ाव में व्यक्ति के व्यवहार और सोच को नियंत्रित करते हैं। जो रिश्ते शुरू में सरल लगते हैं, वही आगे चलकर जटिल हो सकते हैं, यदि उनकी बुनियाद केवल दिखावे पर हो, और उन्हें संस्कारों की समझ न हो....
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💬 आपकी राय हमारे लिए अनमोल है।
आपके ब्लॉग बहुत ही प्रेरणादायक होते है । आज की पीढ़ी अगर यह बाते समझ जाए तो दुनिया सुखदाई होजाएगी। आप इसी तरह अपने ब्लॉग के माध्यम से लोगों में जागरूकता बढ़ाते रहिए यही आशा करते हैं।🙏😊
जवाब देंहटाएंनिष्ठा जी बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏 बहुत खुशी होती है जब कोई मेरे ब्लॉग को पढ़ता है, समझता है और टिप्पणी करता है, तो लगता है कि मैं एक सही दिशा में आगे बढ़ रहा हूं। एक नई ऊर्जा, नए उत्साह के साथ अपने लेखन कार्य को और भी समृद्ध बनाने के उद्देश्य से, जो सामाजिक और पारिवारिक हितों को ध्यान में रखते हुए होती हैं, उन पर कार्य करूं। धन्यवाद
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