संदेश

व्यंग्य लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कल की कथा, आज की व्यथा | Yesterday & Today’s Pain

चित्र
"हँसी के पीछे छुपी सच्चाई, व्यथा के पीछे छुपा व्यंग्य।"           जीवन की राहों पर हम सभी कभी न कभी ठोकर खाते हैं, कहीं न कहीं "पिटते" हैं। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, घर से लेकर गली-मोहल्ले तक, मंदिर-मस्जिद से लेकर सरकारी दफ्तर तक, हर जगह किसी न किसी रूप में इंसान ठोकर खाता ही रहता है। कभी समाज से, कभी परिवार से, कभी व्यवस्था से और कभी रिश्तों से।          यह कविता "कल भी हम पिटते थे, आज भी हम पिटते हैं…" केवल हास्य नहीं है, बल्कि एक गहरा व्यंग्य है उस जिंदगी पर, जहाँ आम आदमी की पीड़ा हर युग में एक-सी बनी रही है। यह व्यथा हँसते-हँसते सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इंसान कब तक इस "पिटाई" को सहता रहेगा और कब उसकी आवाज़ सुनी जाएगी।  रचना आपको हँसी भी दिलाएगी, सोचने पर भी विवश करेगी और जीवन की कटु सच्चाइयों से भी रूबरू कराएगी। आइए पढ़ते हैं यह व्यंग्यात्मक काव्य.... कल की कथा,और आज की व्यथा... जब हम बचपन में छोटे थे, बिन बात के पिटते थे स्कूल कॉलेज में पढ़ते थे,फिर भी हम पिटते थे कल भी हम पिटते थे, आज भी हम पिटते हैं.. बातों पर तो पिटते ह...