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स्क्रीन का नशा

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The Screen Addiction  नई सदी का सबसे ख़ामोश, पर सबसे घातक नशा         यूं तो मानव समाज में समय के साथ नशे की पहचान भी बदलती रही है। बीते वर्षों में जहां नशे का अर्थ शराब, सिगरेट या अन्य नशीले पदार्थों तक सीमित था, वहीं आज की 21वीं सदी में एक बेहद शांत पर बेहद घातक नशे ने जन्म लिया है। वह है... स्क्रीन का नशा । चेतावनी         यह नशा न केवल खतरनाक है, बल्कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बिना शोर-शराबे के, चुपचाप हमारी सोच, जीवनशैली और संबंधों को भीतर से खोखला कर रहा है।  हर आयु वर्ग पर असर करता है यह ‘नया नशा ’      नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो, वह हर आयु और हर वर्ग को बिना किसी सीमा के अपनी गिरफ्त में ले लेता है। उसी तरह ये स्क्रीन का नशा भी आज पूरी दुनिया में लोगो को बड़ी तेजी से प्रभावित कर रहा है। हालांकि इस नशे के शिकार हर व्यक्ति को अपने पीड़ित होने का एहसास हो जाता है फिर भी वह खुद को रोक नहीं पाता और जाने अनजाने वह अपने ही परिवार में इसका प्रसार करना शुरू कर देता है।            ...

एक गुप्तरोग..., मनोरोग

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जाने अनजाने परिवार और समाज की खामोशी   पूर्व में जब ‘गुप्तरोग’ की बात होती थी तब उसे यौन रोगों से जोड़कर देखा और समझा जाता था। क्योंकि यौन रोगों पर लोग आपस में,घर हो या बाहर, चर्चा नहीं करते थे।        किंतु आज स्थिति बिलकुल विपरीत है। आज समाज में "शिक्षा के प्रसार" से लोग अपने यौन रोगों से संबंधित बीमारियों के प्रति सजग ही नहीं, बल्कि मुखर हो चले हैं और हर तरह की चर्चा में भी खुल कर भाग लेते हैं।         सुखद पहलू यह है कि अब चिकित्सक से सलाह और इलाज कराने में उन्हें कोई अलग सा महसूस नहीं होता है। इसलिए वह अब "गुप्तरोग" के रूप में नहीं, बल्कि "यौन रोग" की परिभाषा में स्पष्ट हो चला है।  "गुप्तरोग" की परिभाषा में "मनोरोग" का कब्जा अब "मनोरोग', एक "गुप्तरोग" क्यों है..?      क्योंकि इस रोग के विषय में जानकारी हो जाने के बाद भी इसे समान्य बीमारी ना मान कर, इस पर चुप्पी साध जाते हैं, छुपाते हैं। इसका स्पष्ट असर नज़र नहीं आता, लेकिन जड़ें पूरी व्यवस्था को खोखला कर देती हैं…एक ऐसी महामारी है जो समाज को भीतर से खोखला कर रही ...