माता-पिता: बेटा-बेटी दोनों की जिम्मेदारी, पर सम्मान सहित ....

बुजुर्ग माता-पिता को अपने बच्चों से सेवा से ज्यादा सम्मान और अपनेपन की आवश्यकता है

"Parents: Responsibility for both son and daughter, but with respect."

       बुज़ुर्ग माता-पिता की सेवा से ज़्यादा जरूरी है, उन्हें अपनापन और सम्मान देना। क्योंकि जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसके लिए दुनिया का पहला स्पर्श माँ का होता है और पहला सहारा पिता का। उस पल से लेकर जीवन के हर मोड़ तक माता-पिता अपने बच्चों के लिए दीवार बनकर खड़े रहते हैं। उनके लिए न बेटा बड़ा होता है, न बेटी छोटी। उनके स्नेह की परिभाषा में भेदभाव नाम का शब्द ही नहीं होता।

      बचपन की वो तस्वीरें आज भी आंखों में बसी होती हैं, जब माँ देर रात तक जागकर बच्चों की बुखार में सेवा करती थी, और पिता बिना थके काम करके स्कूल की फीस, किताबें, और सपनों का बोझ अपने कंधों पर उठाए रहते थे। उनके लिए बेटा-बेटी दोनों ही उनके जीवन का केंद्र होते हैं।

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है...

       समय के पंख तेज़ी से उड़ते हैं। बच्चे बड़े हो जाते हैं, अपने-अपने जीवन की दौड़ में लग जाते हैं। बेटा अपने करियर और जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाता है, वहीं बेटी अपने ससुराल में एक नई दुनिया बसाने की कोशिश में जुट जाती है।

      लेकिन इसी बीच, माँ-पिता बूढ़े हो जाते हैं। शरीर कमजोर होता है, आँखों की चमक मद्धम पड़ती है, और दिल, वो अकेलेपन से भरने लगता है। अब उन्हें कोई ज़रूरत नहीं होती पैसे या सुविधाओं की, बल्कि बस एक चीज़ की, "सच्चे अपनापन और सम्मान" की।

बुलावा, जिम्मेदारी या जरूरत...?

जब बेटा कहता है,
“माँ-पापा, अब आपके आराम का समय है, हमारे पास चलिए,”

या जब बेटी आग्रह करती है,
“अब आपकी सेवा का वक्त हमारी बारी है, मेरे घर आइए,”

तो माता-पिता की आंखें भर आती हैं। उन्हें लगता है, अब उनकी थकान मिटेगी, उनका बुढ़ापा सुरक्षित रहेगा।

      परंतु कई बार यह अपनत्व धीरे-धीरे एक पर्दे की तरह खिसकने लगता है, और हकीकत सामने आने लगती है।

'आपके लिए यही ठीक है...'

धीरे-धीरे घर के नियमों में बंधन बढ़ने लगते हैं:

  • "बाहर मत जाइए, अकेले नहीं..."
  • "बच्चों को कुछ मत कहिए, हम संभाल लेंगे..."
  • "अब आपकी बातें पुरानी हो गईं..."

       जब वे अपने पुराने घर लौटने की इच्छा जताते हैं, तो जवाब मिलता है:

“अब वहां आपका क्या काम है? यहाँ आपके लिए सब कुछ है!”

सम्मान के बिना सेवा, क्या वह भी प्रेम है...?

      सेवा तब सुंदर होती है जब उसमें सम्मान हो, स्वीकृति हो। माता-पिता को अपने ही बच्चों के घर में अगर अपनी इच्छाओं के लिए अनुमति लेनी पड़े, तो वह सेवा गुलामी बन जाती है।

     क्या हम यह भूल जाते हैं कि बचपन में हमारे हर गलत फैसले को भी माँ-पिता ने बिना किसी आलोचना के स्वीकारा था?

प्यार बिना शर्त... एक बार फिर...

बेटा हो या बेटी, जब तक हम माता-पिता को "कर्तव्य" समझ कर निभाते रहेंगे, तब तक वे हमारे घर में "अतिथि" बनकर ही रहेंगे।

       हमें यह स्वीकार करना होगा कि माता-पिता कोई बोझ नहीं हैं, न ही वे ऐसी सेवा के पात्र हैं जिसमें उनकी इच्छा और आत्मसम्मान की कोई जगह न हो।
वे हमारे जीवन की जड़ें हैं, जिनसे हमारा अस्तित्व जुड़ा है।

समाज में बदलाव की आवश्यकता...

       अब समय आ गया है कि हम समाज की इस मानसिकता को बदलें।

  • जहाँ माता-पिता को सहारे की नहीं, साथ की ज़रूरत समझी जाए।
  • जहाँ बेटा-बेटी दोनों मिलकर उन्हें सम्मानपूर्ण स्वतंत्रता दें।
  • जहाँ माता-पिता को भी अपनी इच्छा से जीने, निर्णय लेने और खुश रहने का पूरा हक़ मिले।

आइए, संकल्प लें...

हम एक ऐसा समाज बनाएं....

  • जहाँ वृद्धावस्था डरावनी न हो,
  • जहाँ माँ-बाप को कोई सीमा में न बांधे,
  • जहाँ उनका जीवन, अंत तक सम्मान, स्वतंत्रता और स्नेह से भरा हो।

      यही हमारे संस्कारों की सच्ची पहचान होगी।
यही हमारी श्रद्धा और कृतज्ञता का सबसे पवित्र रूप होगा 

“बचपन में जिन्होंने बिना शर्त प्यार दिया, बुढ़ापे में उन्हें वही प्यार लौटाइए।”  

“सेवा से पहले सम्मान दें, तभी सच्चा संबंध बनता है।”

    क्या आपके माता-पिता आज भी अपनी मर्जी से खुलकर जी पा रहे हैं ? आइए, हम मिलकर ऐसा समाज बनाएं जहाँ हर माँ-पिता को सम्मान और स्वतंत्रता मिले...🙏


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लेख श्रेय: ताना-बाना.... जीवन, परिवार और समाज पर लेख
लेखक: मनोज़ कुमार भट्ट 

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टिप्पणियाँ

  1. Aaj ke paridrashay me bilkul sahi kaha hai aapne ye bahut gambheer Vishay hai jis par sabko sochana chahiye

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने वृद्धावस्था की इस जटिलता और वास्तविकता को बड़े ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की है. युवा पीढ़ी को इसे समझना होगा और अपने अभिवावकों को सेवा के साथ यथोचित सम्मान और अपनापन देने के लिए तत्पर रहना होगा. साथ ही वृद्ध अभिभावकों को भी बेटे और बेटी को पर्याप्त स्वतन्त्रता देनी होगी और अनावश्यक दखलअंदाजी से बचना होगा, तभी एक खुशहाल परिवार हो पाएगा.

    जवाब देंहटाएं

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