" क्षमा ", रिश्तों और समाज का सबसे बड़ा साहस

"क्षमा", मानवीय समाज का एक अनिवार्य तत्व क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम अपनी ढेरों गलतियों को नज़रअंदाज़ कर स्वयं को माफ़ कर देते हैं, तो दूसरों को माफ़ करना इतना कठिन क्यों लगता है...? वजह, आज का समाज आत्ममंथन से दूर होता जा रहा है। हम अपनी कमियों को चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें “इंसानी फितरत” कहकर तर्कों की परत चढ़ा देते हैं। और खुद से प्रेम करते रहते हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो। लेकिन जैसे ही सामने वाला कोई गलती करता है तो हमारे भीतर कठोरता जन्म लेती है और हम उसके नाम पर नफ़रत के पत्थर गढ़ने लगते हैं। हम खुद को तो माफ़ कर देते हैं, पर किसी और को वही एक मौका क्यों नहीं देते ? यही दोहरापन न केवल रिश्तों को खोखला करता है, बल्कि पूरी सामाजिक संरचना को भी कमजोर बना रहा है। आज के समय में हम दूसरो को उसकी छोटी सी भी गलती में उसको सबसे बुरे इंसान के रूप से याद रखते है और उसे कभी "क्षमा" न करने की धारणा मन में रख लेते हैं और वहीं स्वयं को अपनी बड़ी से बड़ी गलतियों के लिए अपने क...