"पीढ़ियों के लिए सोच से स्वार्थ तक की यात्रा"

हमारे पूर्वजों और हमारी सोच के बीच का अंतर..दीर्घकालिक सोच बनाम


दीर्घकालिक सोच बनाम तात्कालिक स्वार्थ

        एक वक़्त था जब हमारे पूर्वज फलदार वृक्ष इस सोच के साथ लगाते थे कि आने वाली पीढ़ियाँ उनका फल खाएँगी। यह केवल एक प्राकृतिक मकार्य नहीं था, बल्कि एक विचारधारा थी, समर्पण, परमार्थ और दीर्घकालिक सोच थी। लेकिन आज हम उस मोड़ पर आ पहुँचे हैं जहाँ यह सोच धुंधली होती जा रही है।

वर्तमान परिदृश्य में, "अभी और मेरे लिए"

      आज का व्यक्ति, शीघ्र लाभ की तलाश में है। सरल शब्दों में कहा जाए तो वह उसी वृक्ष को लगाना चाहता है, जिसका फल वह स्वयं खा सके। अपने नाती पोतों की तो बात ही छोड़िए, अपने बच्चों के लिए भी नहीं सोचता। उसका ध्यान स्वयं तक सीमित हो गया है, न आने वाली पीढ़ियाँ उसकी दृष्टि में हैं, न ही उनके हित।

      बच्चों के भविष्य की चिंता गौण होती जा रही है।
समाज में व्यक्तिगत सुख-सुविधा ही प्राथमिकता बन चुकी है और साझा जिम्मेदारियों का स्थान व्यक्तिगत स्वार्थ ले रहा है।

       समाज में इसके त्वरित दुष्परिणाम, विभिन्न रूप में देखने को मिल रहे हैं। आपसी संबंधों में दूरी बढ़ रही है, पारिवारिक जुड़ाव कमजोर हो रहा है। साथ ही वर्तमान पीढ़ियाँ भावनात्मक रूप से अलग-थलग पड़ रही हैं।

       जब व्यक्ति केवल अपने लिए सोचता है, तो समाज में समरसता और सहयोग का "ताना-बाना" टूटने लगता है और स्वार्थ की यही प्रवृत्ति समाज में कई स्तरों पर विकृति उत्पन्न करती है।

      तो आइये हम सब मिल कर अपनी विरासत को पुनर्जीवित का प्रयास करें। हमें अब उस सोच की ओर लौटना होगा जो "हम" से शुरू होकर "आने वाली पीढ़ी" पर जाकर पूरी होती है। लेकिन कैसे...?

समाधान की दिशा के कदम...
  • शिक्षा में मूल्य आधारित पाठ्यक्रम जोड़ें जो परमार्थ, त्याग और सामाजिक उत्तरदायित्व को समझाएँ।
  • परिवार में पीढ़ियों का संवाद बढ़ाएँ ताकि भावनात्मक जुड़ाव सशक्त हो।
  • "एक वृक्ष अगली पीढ़ी के लिए" जैसे अभियान चलाकर लोगों को इसके पीछे के मतलब को समझा कर, दीर्घकालिक सोच के लिए प्रेरित करें।
"जागरूकता ही क्रांति है"

     सबसे महत्वपूर्ण बात, यूं तो सरकारों द्वारा प्रति वर्ष वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम, जो कि अत्यंत सराहनीय है, उसी कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए, उसमें एक मूल भावना को भी प्रचारित करना चाहिए कि "ऐसे पौधे लगाएं जिनके फल हमारे नाती पोतों को मिले"।

      और साथ ही इसके अंदर छिपी मूल भावना को भी बच्चों में एक अभियान चला कर समझाएं, ताकि नई पीढ़ी में अपनी आगामी पीढ़ी और समाजिक हित के प्रति दूरगामी सोच की भावना का सूत्रपात हो...

       यह लेख एक आह्वान है, स्वार्थ की संकीर्ण दीवारों को तोड़कर भविष्य की छाया देने वाले विचारों को रोपित करने का। हमें "अभी" नहीं बल्कि अपनी अपनी आगामी पीढ़ी हेतु "आगे" के लिए जीना सीखना होगा, क्योंकि यही सोच समाज को एकजुट कर सकती है...

लेखक: मनोज भट्ट
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टिप्पणियाँ

  1. आपने बहुत नेक विचार को आगे बढ़ाने के लिए अपने इस ब्लॉग के माध्यम का एक बहुत ही अच्छा प्रयास किया हैं । अगर आपकी तरह इस मुद्दे पे लोग गहन अध्ययन करे तो यह देश प्रेम,सद्भावना, और नेक विचारों से परिपूर्ण होजाएगा।

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    1. निष्ठा जी,बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏आपकी टिप्पणी से यह प्रतीत होता है कि मैं अपने विषय को सही दिशा में प्रस्तुत कर रहा हूं ।अब आगे बाकी लोगों पर निर्भर करता है...🙏

      हटाएं
  2. आपका विचार सही है कि फलदार वृक्षों को लगाने का उद्देश्य मात्र वृक्षों को रोपित करके पर्यावरण रक्षा और भविष्य के लिए फल उत्पादन करना ही नहीं है, अपितु ये एक ऐसी सोच है जो कि हमें ऐसे कर्म करने के लिए प्रेरित करती है जिसमें हम अपने लिए नहीं बल्कि अन्य प्राणियों के हित के लिए कार्य करने को तत्पर होते हैं . https://amzn.in/d/9ZR8ZXk

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    उत्तर
    1. धन्यवाद प्रवीण जी।
      आपका कथन स्वतः स्पष्ट है और यही मेरे लेख का एकमात्र उद्देश्य भी। मेरा पूरा विश्वास है कि हमारे समाज मे इस दूरगामी सोच का पुनर्जागरण हो जाए और यदि हम सब सामूहिक रूप से उस धारणा को धरातल पर ले आए, जो धारणाएं हमारे पूर्वजों की थी, अपनी आगामी पीढ़ी को लेकर, तो निश्चय ही हमारा राष्ट्र एक नई आधारशिला को प्राप्त करेगा।

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  3. उत्तम लेख विचार करने योग्य...

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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद महोदय🙏
      निःसंदेह,आपने मेरे लेख को धैर्य पूर्वक पढ़ा और समझा। किंतु कहीं विलंब ना हो जाए, इसलिए इस पर क्रियान्वयन हेतु अपनी पीढ़ी के लिए, इसके महत्व पर कार्य प्रारंभ कर दें। इसे एक लेख के रूप में ना देख कर एक मुहिम के रूप में ले। धन्यवाद 🙏

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