संदेश

शिक्षा से पहले सभ्यता Civility Before Education

चित्र
शिक्षित होने से पहले सभ्य होना आवश्यक है (एक दृष्टिकोण)       आज का युग ज्ञान-विज्ञान, तकनीक और प्रगति का युग कहा जाता है। हर ओर डिग्रियों की दौड़ है, बच्चों से लेकर युवाओं तक हर कोई केवल इस प्रतिस्पर्धा में उलझा हुआ है कि कौन अधिक अंक लाता है, किसे बेहतर संस्थान से डिग्री मिलती है, कौन ऊँचे वेतन वाली नौकरी पाता है।       लेकिन इस आपाधापी में एक महत्वपूर्ण प्रश्न पीछे छूट जाता है कि क्या केवल शिक्षित होना ही पर्याप्त है, या सभ्य होना, उससे कहीं अधिक अनिवार्य है ? शिक्षा और सभ्यता में अंतर की सूक्ष्म रेखा      शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है, इंसान को इंसान बनाना, उसके भीतर नैतिकता, संवेदनशीलता और मानवता का बीजारोपण करना। लेकिन दुर्भाग्य से आज शिक्षा की परिभाषा केवल अंकतालिका, परीक्षा परिणाम और कैरियर की ऊँचाइयों तक सिमट कर रह गई है।       जबकि सभ्यता वह गुण है जो शिक्षा से परे जाकर हमें जीवन जीने का तरीका सिखाती है। सभ्य होने का मतलब है, दूसरों के विचारों का सम्मान करना, अपनी ...

जो दिखता है वही बिकता है , लेकिन टिकने के लिए क्या चाहिए..? | What You Show is What Sells , But How to Sustain It..?

चित्र
जो  दिखता है, वही बिकता है, पर क्या इतना ही काफी है. ..?       बचपन से ही हम सुनते आए हैं , “ जो दिखता है, वही बिकता है।” यह कथन आज के समय में एकदम सटीक बैठता है । सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म और बाज़ारवाद के इस युग में यदि आप स्वयं को प्रदर्शित नहीं करते, तो मानो आप अस्तित्व में ही नहीं हैं। लेकिन यहाँ एक बड़ा प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या केवल दिखने भर से ही कोई व्यक्ति, वस्तु या विचार दीर्घकालिक स्तर पर स्थापित हो पाएगा ?      तो आईए एक सिद्धांत पर विचार करें... दिखना ज़रूरी है, क्योंकि यही पहचान है       ये कदाचित सच है कि आज के दौर में यदि कोई व्यक्ति अंतर्मुखी रहकर, केवल अपनी विशेषताओं के साथ, भीतर की गहराइयों में खोया रहता है, तो उसकी प्रतिभा दूसरों तक नहीं पहुँच पाती। वह चाहे कितना भी योग्य क्यों न हो, अगर वह सामने नहीं आएगा, तो दुनिया उसे पहचान ही नहीं पाएगी। यही कारण है कि आज हर किसी के लिए अपना एक उचित मंच या प्लेटफॉर्म बनाना अनिवार्य हो गया है, चाहे वह कोई वस्तु हो,लेखन हो, कला हो, संगीत हो या कोई दर्शन। आज अपने आप को ...

"विकल्पों की भीड़ में खोती है सफलता: एकाग्रता ही है असली शक्ति"

चित्र
" जहाँ विकल्पों की भीड़ है, वहाँ भ्रम है। जहाँ एक ही राह है, वहाँ संकल्प है। और संकल्प ही सफलता की सीढ़ी है।"       आज के समय में जब हर दिशा में विकल्पों की भरमार कैरियर, रिश्ते, विचारधारा और जीवनशैली आदि, तब यह कहना कि “ विकल्प सफलता में बाधा बनते हैं” एक साहसिक विचार लगता है। परंतु यदि हम गहराई से देखें, तो पाएंगे कि विकल्पों की अधिकता, अक्सर निर्णयहीनता, अस्थिरता और भ्रम को जन्म देती है। और यही वह बिंदु है जहाँ हमारी सच्ची सफलता की राह अक्सर धुंधली हो जाती है। विकल्प: वरदान या भ्रम का जाल ?       विकल्प होना एक स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जब विकल्प इतने अधिक हो जाएं कि व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाए, तो यही स्वतंत्रता एक बोझ बन जाती है। जैसे... एक छात्र जो दस कैरियर विकल्पों के बीच उलझा है, वह शायद किसी एक में उत्कृष्टता नहीं पा सकेगा।   एक लेखक जो हर शैली में लिखना चाहता है, वह शायद किसी एक शैली में गहराई नहीं ला पाएगा।   अतः विकल्पों की अधिकता हमें सतही बनाती है, गहराई नहीं देती। सीमित विकल्पों में छिपी होती है संकल...

वैश्विक उथल-पुथल के दौर में परिवारों में सामंजस्य की कशमकश... मानसिक स्वास्थ्य, पीढ़ी अंतराल और समाधान

चित्र
वैश्विक उथल-पुथल के दौर में पारिवारिक रिश्तों का ताना-बाना साधने की कशमकश         आज का युग वैश्विक अस्थिरता (Global Instability) और सामाजिक तनाव (Social Stress) का है। एक ओर महामारी, युद्ध और आर्थिक असमानता ने मानवता को झकझोरा है, तो वहीं दूसरी ओर परिवार, जो समाज की सबसे मूलभूत इकाई होती है, उसकी आंतरिक एकजुटता (Internal Cohesion) टूटने लगी है।       बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक हर वर्ग आज एक अजीब सी कशमकश से गुजर रहा है। जहाँ पहले परिवार को “सुरक्षित आश्रय” माना जाता था, आज वहीं, अब वही स्थान तनाव, अविश्वास और मतभेद का प्रतीक बन रहा है।       इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे वैश्विक उथल-पुथल का असर सीधे पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है, साथ ही उन रास्तों को तलाशने की कोशिश करेंगे, जिनसे परिवार और समाज एक बार फिर से सामंजस्य (Harmony) और तालमेल (Coordination) की नई दिशा में, एक नए रास्ते पर बढ़ सकें।   वैश्विक संकट और परिवारों पर पड़ने वाला असर मानसिक स्वास्थ्य पर COVID-19 महामारी ने सबसे पहले परिवारों की जड़ों को हिला दिया...

संघर्ष ही आत्मबल का स्रोत | Struggle is the True Source of Inner Strength

चित्र
संघर्ष और आत्मबल (Struggle & Inner Strength)         आज का युवा छोटी-सी असफलता या संघर्ष देखकर हतोत्साहित हो जाता है। इसका कारण है कि उन्हें बचपन से ही कठिन परिस्थितियों से जूझने के अवसर से उनके ही माता पिता ही वंचित कर देते हैं ।        संघर्ष ही आत्मबल का शिक्षक है, कठिनाइयाँ हमें हमारी कमजोरियों और मजबूतियों से परिचित कराती हैं। जब हम उनसे जूझते हैं, तो आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है। मानव जीवन सरल रास्तों से नहीं, बल्कि संघर्षों से निखरता है। जब इंसान कठिनाइयों से जूझता है तो उसे अपनी वास्तविक क्षमता का पता चलता है। संघर्ष हमें यह सिखाता है कि किस परिस्थिति में धैर्य रखना है, कहाँ साहस दिखाना है और कैसे अपनी कमजोरियों को ताकत में बदलना है।         इसे एक सरल उदाहरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है जैसे आप सबने टीवी पर जंगल के कुछ वीडियो देखे होंगे, जिसमें शेर के बच्चे अपने माता-पिता से कैसे शिक्षा प्राप्त करते हैं वह उदाहरण सबसे समीचीन है। शेर मां-बाप द्वारा बच्चों को कब तक खुद से खाना खिलाना है, बच्चों को कितनी दूर तक खे...

कल की कथा, आज की व्यथा | Yesterday & Today’s Pain

चित्र
"हँसी के पीछे छुपी सच्चाई, व्यथा के पीछे छुपा व्यंग्य।"           जीवन की राहों पर हम सभी कभी न कभी ठोकर खाते हैं, कहीं न कहीं "पिटते" हैं। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, घर से लेकर गली-मोहल्ले तक, मंदिर-मस्जिद से लेकर सरकारी दफ्तर तक, हर जगह किसी न किसी रूप में इंसान ठोकर खाता ही रहता है। कभी समाज से, कभी परिवार से, कभी व्यवस्था से और कभी रिश्तों से।          यह कविता "कल भी हम पिटते थे, आज भी हम पिटते हैं…" केवल हास्य नहीं है, बल्कि एक गहरा व्यंग्य है उस जिंदगी पर, जहाँ आम आदमी की पीड़ा हर युग में एक-सी बनी रही है। यह व्यथा हँसते-हँसते सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इंसान कब तक इस "पिटाई" को सहता रहेगा और कब उसकी आवाज़ सुनी जाएगी।  रचना आपको हँसी भी दिलाएगी, सोचने पर भी विवश करेगी और जीवन की कटु सच्चाइयों से भी रूबरू कराएगी। आइए पढ़ते हैं यह व्यंग्यात्मक काव्य.... कल की कथा,और आज की व्यथा... जब हम बचपन में छोटे थे, बिन बात के पिटते थे स्कूल कॉलेज में पढ़ते थे,फिर भी हम पिटते थे कल भी हम पिटते थे, आज भी हम पिटते हैं.. बातों पर तो पिटते ह...