वैश्विक उथल-पुथल के दौर में परिवारों में सामंजस्य की कशमकश... मानसिक स्वास्थ्य, पीढ़ी अंतराल और समाधान


वैश्विक उथल-पुथल के दौर में पारिवारिक रिश्तों का ताना-बाना साधने की कशमकश 

       आज का युग वैश्विक अस्थिरता (Global Instability) और सामाजिक तनाव (Social Stress) का है। एक ओर महामारी, युद्ध और आर्थिक असमानता ने मानवता को झकझोरा है, तो वहीं दूसरी ओर परिवार, जो समाज की सबसे मूलभूत इकाई होती है, उसकी आंतरिक एकजुटता (Internal Cohesion) टूटने लगी है।

      बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक हर वर्ग आज एक अजीब सी कशमकश से गुजर रहा है। जहाँ पहले परिवार को “सुरक्षित आश्रय” माना जाता था, आज वहीं, अब वही स्थान तनाव, अविश्वास और मतभेद का प्रतीक बन रहा है।

      इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे वैश्विक उथल-पुथल का असर सीधे पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है, साथ ही उन रास्तों को तलाशने की कोशिश करेंगे, जिनसे परिवार और समाज एक बार फिर से सामंजस्य (Harmony) और तालमेल (Coordination) की नई दिशा में, एक नए रास्ते पर बढ़ सकें।

 वैश्विक संकट और परिवारों पर पड़ने वाला असर

मानसिक स्वास्थ्य पर

COVID-19 महामारी ने सबसे पहले परिवारों की जड़ों को हिला दिया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार महामारी के पहले ही वर्ष में अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) में 25% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।

बच्चों और युवाओं पर इसका गहरा असर पड़ा, नींद की समस्या, आक्रामकता, पढ़ाई से अरुचि और डिजिटल स्क्रीन की लत इसके बड़े लक्षण उभर कर सामने आए।
वहीं माता-पिता भी बेरोज़गारी और आर्थिक दबाव के कारण आपसी तनाव का शिकार बने, जिससे उनके वैवाहिक विवाद और तलाक की दर, कई देशों में बढ़ी।

घरेलू हिंसा का बढ़ना

लॉकडाउन के दौरान दुनिया भर में घरेलू हिंसा (Domestic Violence) के मामले तेज़ी से बढ़े।

भारत में ही 2020 में महिला आयोग को प्राप्त घरेलू हिंसा की शिकायतें 131% तक बढ़ गईं।

UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार 66% देशों में बच्चों के खिलाफ हिंसा से निपटने वाली संस्थाओं को अपनी सेवाएँ देने में बाधा आई।

उपरोक्त चौंकाने वाले आँकड़े दर्शाते हैं कि संकट के समय परिवार, जो सुरक्षा का स्थान होना चाहिए, वहीं सबसे असुरक्षित साबित हुआ।

युद्ध और विस्थापन का दबाव

संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में दुनिया के संघर्ष वाले क्षेत्रों (Conflict Zones) में 65% की वृद्धि हुई है, यूक्रेन, म्यांमार, मध्य-पूर्व और अफ्रीका जैसे इलाकों में स्थिति सबसे गंभीर है।

यूक्रेन में तो परिवारों के बीच आपसी विश्वास टूट चुका है। युद्ध में शामिल सैनिक और उनके घर पर प्रतीक्षा करती पत्नियाँ और बच्चे एक दूसरे से भावनात्मक दूरी महसूस कर रहे हैं। लाखों परिवार विस्थापित हो गए, जिससे बच्चों की शिक्षा, बुजुर्गों की देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा।

आर्थिक असमानता का असर, सामाजिक विभाजन का कारण

वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता बढ़ रही है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि जिस समाज में आर्थिक असमानता अधिक होती है वहीं अपराध दर भी अधिक होती है।

ब्रिटेन में हाल की रिपोर्ट के अनुसार नागरिकों का अपनी सरकार और पड़ोसियों पर विश्वास ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है।

ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में महंगाई ने परिवारों को इस स्थिति में पहुँचा दिया है कि लोग स्वास्थ्य सेवा और भोजन छोड़कर सिर्फ घर का किराया चुकाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

पीढ़ियों के बीच मतभेद

आज परिवारों के भीतर Generation Gap (पीढ़ी अंतराल) भी गहराता जा रहा है।

जहां अधिकांश बच्चे और युवा, डिजिटल जीवन, त्वरित संतुष्टि (Instant Gratification) और स्वतंत्रता की चाह में आभासी दुनिया में जी रहे हैं।

वहीं माता-पिता, आर्थिक समस्याओं से संघर्ष, पारिवारिक एवं सामाजिक परंपराओं और अनुशासन पर जोर देने के लिए अथक संघर्षों के जंजाल में जूझ रहे हैं।

और सबसे महत्वपूर्ण, बुजुर्ग वर्ग, मूल्य, संस्कार और परंपरागत सामाजिक ढाँचे की रक्षा की चिंता में अंतिम सांसे ले रहे हैं।

इससे परिवारों के भीतर कहीं न कहीं संवाद (Communication) कम हो रहा है और आपसी सम्मान (Mutual Respect) खत्म सा हो रहा है।

संकट का संपूर्ण वैश्विक सामाज पर असर

यह निश्चित है कि जब परिवार में ही तनाव है, तो समाज में एकजुटता (Social Cohesion) स्वाभाविक रूप से कमजोर होगी।

गौर तलब तथ्य है कि युवा पीढ़ी का मानसिक स्वास्थ्य गिरने से समाज में अपराध, नशा और हिंसा जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

तो वहीं, बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार होकर अकेलापन (Loneliness) झेल रहे हैं, जो शांत महामारी (Silent Pandemic) के रूप में उभर रहा है।

विडंबना देखिए कि महिलाएँ दोहरी भूमिका निभा रही हैं, आर्थिक योगदान भी और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी, फिर भी उन्हें वो पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है, जिसकी वो हकदार हैं।

समाधान पर चर्चा

उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान दें तो आसानी से इस बात को समझा जा सकता है कि किसी परिवार का संकट अब केवल निजी समस्या नहीं रहा, यह पूरी वैश्विक सामाजिक व्यवस्था (Global Social Order) को प्रभावित कर रहा है।

आईए अब इन सब समस्याओं पर जीत हासिल करने के उपायों पर मंथन करें, परिवारों में सामंजस्य स्थापित करने की राह दिखाई दे...

व्यक्तिगत स्तर पर (Individual Level) 
हम सभी को मिलजुल कर विभिन्न क्षेत्रों सामूहिक प्रयास करने होंगे...
  • Mental Health Care: योग, ध्यान, काउंसलिंग और “-Care” पर ध्यान।
  • Emotional Literacy: अपने साथ सबकी भावनाओं को समझना और उन्हें स्वस्थ तरीके से व्यक्त करना।
  • Digital Detox: परिवार के साथ समय बिताना, स्क्रीन के नशे से दूरी रखना।
पारिवारिक स्तर पर (Family Level) 
प्रयास की शुरुआत कर, सिद्धांत बनाएं कि...
  • (Open Communication) हर सदस्य की बात सुनी जाए, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक।
  • माता-पिता मिलकर (Co-Parenting) बच्चों को सबसे बड़ा ये सहयोग दें कि अपने मतभेदों का भार बच्चों पर न डालें।
  • सप्ताह में एक दिन सामूहिक भोजन (Family Rituals) कोई खेल या पूजा, जो भी परंपरा परिवार को जोड़ सके, उसका उत्साह से आयोजन करें।
सामाजिक स्तर पर (Community Level)
  • मोहल्ला या गाँव स्तर पर सहायता समूह बनाएं, जहाँ पूरा परिवार साझा कर सकें।
  • स्कूलों में “Life Skills” और “Empathy Education” को शामिल करना।
  • मंदिर, गुरुद्वारे, चर्च या सामुदायिक केंद्र, संवाद और सहयोग हेतु स्थापित करना।
नीतिगत स्तर पर (Policy Level) 
भी हमें अधिक मेहनत करनी होगी।
  • सरकारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और पारिवारिक कल्याण योजनाओं को प्राथमिकता देना होगा।
  • आर्थिक असमानता घटाने के लिए समान सामाजिक सुरक्षा (Universal Social Security) जैसी नीतियाँ लागू करनी होंगी।
  • वर्तमान दौर की महत्वपूर्ण प्रासंगिक आपदा, युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में परिवार-केंद्रित पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
वैश्विक स्तर पर (Global Level)
  • संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ केवल युद्ध जनित समस्याओं (Conflict Resolution) तक ही सीमित न रहें, बल्कि वृहद स्तर पर परिवार पुनर्वास कार्यक्रम (Family Rehabilitation Programs) भी चलाएँ।
  • गैर सरकारी संस्थाएं (Global NGOs) शिक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक समर्थन पर निवेश बढ़ाएँ।
     इस प्रकार से हम अवश्य ही एक सकारात्मक नई दिशा की ओर अग्रसर होंगे।

आज जब पूरा विश्व उथल-पुथल से गुजर रहा है, परिवार ही वह पहला आधार है, जिससे हम Social Healing (सामाजिक उपचार) और Collective Resilience (सामूहिक लचीलापन) की शुरुआत कर सकते हैं।

आँकड़े बताते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य, घरेलू हिंसा और सामाजिक विभाजन अभूतपूर्व स्तर पर हैं। परंतु यही समय है, जब परिवारों को “संकटग्रस्त इकाई” से “सुधार की प्रयोगशाला” बनाया जा सकता है।

यदि बच्चे और युवा Empathy सीखें, यदि माता-पिता संवाद और सहयोग करें, यदि बुजुर्गों का सम्मान हो, तो परिवार फिर से समाज का सबसे मजबूत स्तंभ बन सकता है।

दुनिया भले ही विभाजित हो, परिवार एकजुट हो सकते हैं। और जब परिवार स्वस्थ हो जाएंगे, तब समाज और विश्व स्वाभाविक रूप से शांति, सामंजस्य और प्रगति की नई राह पर अग्रसर होंगे।”

The world may be divided, but families can be united. And once families are healed, the society and the globe will naturally find a new path of peace, harmony, and progress.”...

यह लेख “रिश्तों का ताना-बाना” ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है। परिवार, समाज और मन के रिश्तों की बातों के लिए पढ़ते रहें:👇

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पढ़ने के लिए धन्यवाद...🙏
    

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