संघर्ष ही आत्मबल का स्रोत | Struggle is the True Source of Inner Strength
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संघर्ष और आत्मबल (Struggle & Inner Strength) |
आज का युवा छोटी-सी असफलता या संघर्ष देखकर हतोत्साहित हो जाता है। इसका कारण है कि उन्हें बचपन से ही कठिन परिस्थितियों से जूझने के अवसर से उनके ही माता पिता ही वंचित कर देते हैं।
संघर्ष ही आत्मबल का शिक्षक है, कठिनाइयाँ हमें हमारी कमजोरियों और मजबूतियों से परिचित कराती हैं। जब हम उनसे जूझते हैं, तो आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है। मानव जीवन सरल रास्तों से नहीं, बल्कि संघर्षों से निखरता है। जब इंसान कठिनाइयों से जूझता है तो उसे अपनी वास्तविक क्षमता का पता चलता है। संघर्ष हमें यह सिखाता है कि किस परिस्थिति में धैर्य रखना है, कहाँ साहस दिखाना है और कैसे अपनी कमजोरियों को ताकत में बदलना है।
इसे एक सरल उदाहरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है जैसे आप सबने टीवी पर जंगल के कुछ वीडियो देखे होंगे, जिसमें शेर के बच्चे अपने माता-पिता से कैसे शिक्षा प्राप्त करते हैं वह उदाहरण सबसे समीचीन है। शेर मां-बाप द्वारा बच्चों को कब तक खुद से खाना खिलाना है, बच्चों को कितनी दूर तक खेलने देना है और तब तक वे उन पर निगाह भी रखते हैं, उनके साथ संघर्ष वाला खेल भी खेलते हैं। बच्चों को शिकार के लिए या अपने शत्रुओं से संघर्ष करने के लिए प्रशिक्षण का एक पूरा दौर दिखता है। जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं तब वह शेर मां-बाप अपने संरक्षण में छोटे-छोटे शिकार करवाते हैं। फिर जब वह पूर्ण रूप से सक्षम जाते हैं तब वह उन्हें स्वतंत्र छोड़ देते हैं।
यही संघर्ष हमें आत्मबल, सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों का उपहार देता है।
युवा पीढ़ी और संघर्ष से दूरी
आज की युवा पीढ़ी अक्सर संघर्ष को देखकर घबरा जाती है। छोटी-सी असफलता उन्हें भीतर तक हिला देती है। कई बार वे इतने अधीर हो जाते हैं कि जीवन की कठिनाइयों से बचने के लिए गलत कदम उठा लेते हैं।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं –
- जल्दी हार मान लेना
- अत्यधिक महत्वाकांक्षी होना
- धैर्य और प्रतीक्षा की कमी
- परिस्थितियों से भागने की प्रवृत्ति
जब तक व्यक्ति संघर्ष से नहीं जूझता, तब तक उसका आत्मबल गहराई से विकसित नहीं हो सकता।
माता-पिता की भूमिका
बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता की अहम भूमिका होती है। आजकल अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को हर तरह की सुविधा और सुरक्षा देना चाहते हैं। वे उन्हें संघर्ष से बचाकर रखते हैं ताकि बच्चों को कोई कठिनाई न झेलनी पड़े।
परिणाम यह होता है कि जब वही बच्चे बाहर की कठोर दुनिया में कदम रखते हैं तो अचानक सामने आने वाली चुनौतियाँ उन्हें विचलित कर देती हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सुविधाएँ अवश्य दें, लेकिन साथ ही उन्हें जीवन की सच्चाइयों और संघर्षों का अनुभव भी कराएँ। यही अनुभव उनके आत्मबल को मजबूत करेगा।
आत्मबल का वास्तविक अर्थ
आत्मबल केवल शारीरिक शक्ति नहीं है। यह मानसिक दृढ़ता, धैर्य, साहस और नैतिक संबल का दूसरा नाम है। आत्मबल वह शक्ति है जो इंसान को कठिन से कठिन परिस्थिति में भी स्थिर और संयमित रखती है संघर्ष ही आत्मबल का असली शिक्षक है। यह हमें आत्मविश्वास देता है और बताता है कि कोई भी परिस्थिति स्थायी नहीं होती। यदि हम दृढ़ निश्चय और धैर्य से आगे बढ़ें तो हर कठिनाई आसान हो सकती है।
समाज और आत्मबल
समाज भी आत्मबल को कमजोर या मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाता है। यदि समाज युवा पीढ़ी को केवल भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर धकेलेगा तो आत्मबल धीरे-धीरे कमज़ोर होगा। लेकिन यदि समाज उन्हें धैर्य, संयम, संघर्ष और नैतिकता का महत्व सिखाएगा, तो आने वाली पीढ़ियाँ कहीं अधिक सशक्त बनेंगी।
निष्कर्ष
संघर्ष से भागना आसान है, लेकिन उससे लड़ना ही जीवन का असली साहस है। बिना संघर्ष के आत्मबल कभी नहीं बढ़ता। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे और युवा मजबूत, धैर्यवान और साहसी बनें तो उन्हें संघर्षों से जूझने देना होगा।
यही आत्मबल उन्हें भविष्य में हर कठिन परिस्थिति में अडिग और अटूट बनाए रखेगा। संघर्ष जीवन की प्रयोगशाला है, और जो उसमें टिकता है, वही आत्मबल से सम्पन्न होता है।
माता-पिता और समाज की ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को सुविधाओं के साथ-साथ जीवन के यथार्थ से भी परिचित कराएँ, ताकि उनमें धैर्य, साहस और आत्मबल का विकास हो सके....
पढ़ने के लिए धन्यवाद...🙏
मनोज भट्ट, कानपुर
https://manojbhatt63.blogspot.com
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