"। """ " इमर्जेंसी नम्बर...जीवन की असली पूँजी "
क्या आपकी जिंदगी में कोई ऐसा है जिसे आप संकट की घड़ी में बिना संकोच फोन कर सकते हैं ? और क्या आप खुद किसी के लिए ऐसे हैं ?
यह लेख उस असली पूँजी की बात करता है जो न तो बैंक में जमा होती है, न ही सोशल मीडिया पर दिखती है, बल्कि दिलों में बसती है।
"इमर्जेंसी नम्बर" केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। आइए आज, इस संवेदनशील विषय पर विचार करें।
हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ व्यक्ति की सफलता को उसकी संपत्ति, पद, शोहरत और सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स की संख्या से आँका जाता है। लेकिन क्या यही जीवन की असली कमाई है ? क्या इन बाहरी चकाचौंध के पीछे छिपी आत्मिक पूँजी को हम पहचान पा रहे हैं ?
इस लेख में हम एक ऐसे मापदंड की बात करेंगे जो न तो बैंक बैलेंस से जुड़ा है, न ही किसी पदवी से, बल्कि उस मानवीय रिश्ते से जुड़ा है जिसे हम "इमर्जेंसी नम्बर" कह सकते हैं।
इमर्जेंसी नम्बर का अर्थ
यह शब्द सुनते ही हमारे मन में एम्बुलेंस, पुलिस या फायर ब्रिगेड का ख्याल आता है। लेकिन यहाँ इसका आशय उन व्यक्तियों से है जो हमारे जीवन में ऐसे हैं कि जब हम किसी घनघोर संकट में हों, तो वे बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी औपचारिकता के, हमारे लिए तत्पर रहते हैं। ये वे लोग हैं जो हमारे रिश्तेदार नहीं हैं, लेकिन रिश्तों की परिभाषा को नए आयाम देते हैं।
जीवन की असली कमाई
यदि आपके पास कम से कम एक ऐसा व्यक्ति है जो आपके लिए इमर्जेंसी नम्बर की तरह कार्य करता है, तो निश्चय ही आपने जीवन में कुछ अमूल्य कमाया है। और यदि ऐसे लोग एक से अधिक हैं, तो आप वास्तव में धनवान हैं, संवेदनाओं, विश्वास और मानवीय रिश्तों की दृष्टि से।
यह कमाई न तो शेयर मार्केट में घटती-बढ़ती है, न ही इसे कोई टैक्स अधिकारी जाँच सकता है। यह कमाई आत्मा की गहराई में होती है, जहाँ विश्वास, सहानुभूति और निस्वार्थता की नींव पर रिश्ते खड़े होते हैं।
ये तो हो गई अपने लिए वाली बात, अब दूसरा पक्ष भी जानने की कोशिश करते हैं कि हम कितनों के इमर्जेंसी नम्बर हैं ?
यह प्रश्न और भी अधिक महत्वपूर्ण है। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के लिए इमर्जेंसी नम्बर हैं जो आपका रिश्तेदार नहीं है ? क्या कोई आपको संकट में सबसे पहले याद करता है ? यदि हाँ, तो आप समाज के लिए एक अमूल्य संसाधन हैं। आप केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक भरोसे की दीवार हैं जिस पर कोई टूटते समय टिक सकता है।
यह भूमिका निभाना आसान नहीं है। इसके लिए संवेदनशीलता, समय, धैर्य और निस्वार्थता चाहिए। लेकिन यही वह भूमिका है जो हम सब को जोड़ती है, समाज को जोड़ती है, जो मानवता को जीवित रखती है।
सामाजिक चेतना की आवश्यकता
आज का समाज, तेजी से आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। हम अपने दायरे, अपने परिवार, अपने हितों तक सीमित होते जा रहे हैं। ऐसे में "इमर्जेंसी नम्बर" जैसे रिश्ते विलुप्त होते जा रहे हैं। हमें इस चेतना को पुनर्जीवित करना होगा कि जीवन केवल अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी जीने का नाम है।
स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थानों में इस विषय पर संवाद होना चाहिए। बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि दोस्ती केवल मौज-मस्ती नहीं, बल्कि संकट में साथ निभाने की परीक्षा भी है। युवाओं को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे अपने जीवन में ऐसे संबंध बनाएँ जो समय की कसौटी पर खरे उतरें।
डिजिटल युग में मानवीय स्पर्श
सोशल मीडिया ने हमें जोड़ने का दावा किया है, लेकिन क्या वास्तव में हम जुड़े हैं ? हजारों फॉलोअर्स होने के बावजूद, जब कोई व्यक्ति मानसिक संकट में होता है, तो उसे समझने वाला कोई नहीं होता। ऐसे में एक इमर्जेंसी नम्बर वाला व्यक्ति ही, किसी मनोचिकित्सक से अधिक प्रभावी हो सकता है।
हमें डिजिटल रिश्तों से आगे बढ़कर वास्तविक, मानवीय रिश्तों की ओर लौटना होगा। यह तभी संभव है जब हम अपने जीवन में ऐसे लोगों को स्थान दें जो हमारे लिए संकट में खड़े हो सकें, और हम उनके लिए।
आत्ममंथन का समय
इस लेख को पढ़ते समय एक बार ठहरिए और सोचिए--
- क्या आपके पास ऐसा कोई व्यक्ति है जो आपके लिए इमर्जेंसी नम्बर है ?
- क्या आप किसी के लिए इमर्जेंसी नम्बर हैं ?
- क्या आपने ऐसे रिश्ते बनाए हैं जो स्वार्थ से परे हैं ?
- क्या आप अपने बच्चों को ऐसे रिश्ते बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं ?
यदि इन प्रश्नों का उत्तर सकारात्मक है, तो आप समाज के लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं। यदि नहीं, तो अभी भी समय है, रिश्तों को पुनः परिभाषित करने का, जीवन को नई दृष्टि से देखने का।
उपरोक्त विचारों को समझते हुए, हमें यह स्वीकार करना होगा कि "इमर्जेंसी नम्बर" केवल एक संज्ञा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि जीवन की असली पूँजी वह है जो संकट में साथ देती है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम ऐसे बनें कि कोई हमें संकट में याद करे, और हम बिना किसी संकोच के उसकी सहायता को पहुँचें।
यदि हम इस चेतना को समाज में फैला सकें, तो हम एक ऐसे समाज की नींव रख सकते हैं जहाँ रिश्ते स्वार्थ से नहीं, संवेदना से बनते हैं। जहाँ व्यक्ति की पहचान उसके पद से नहीं, उसकी उपस्थिति से होती है। और जहाँ हर व्यक्ति किसी न किसी के लिए इमर्जेंसी नम्बर होता है...
इस लेख की पृष्ठभूमि मेरे बचपन के एक सिद्धांत पर आधारित है कि " आइए एक दूसरे की मदद करें " जिसे आज शाब्दिक विस्तार दिया...
पढ़ने के लिए धन्यवाद...🙏
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