समाज और परिवार में संवाद का क्षय....

 
 लगभग तीन दशक पूर्व, कभी घर की बैठकें और समाज की गोष्ठियाँ विचारों का केन्द्र हुआ करती थीं। लोग धर्म, शिक्षा, संस्कृति और जीवन मूल्यों पर विचार करते थे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सबका योगदान होता था, जिसमें संवाद, संवेदना, सहमति या असहमति में भी
गरिमा होती थी।

     किंतु धीरे-धीरे "राजनीति चर्चा" ने परिवार और समाज के बीच, संवाद का केंद्र बिंदु बन, गहरी पैठ बना ली है। आज घरों में सुबह की चाय से लेकर रात के भोजन तक का प्रमुख विषय राजनीति बन गया है। 

    सामाजिक मुद्दे जैसे बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य या ग्रामीण-नगरीय विकास आदि विषयों की सकारात्मक चर्चा गायब से हो गए हैं।

    वही परिवारिक सरोकार के महत्वपूर्ण विषयों, जैसे पीढ़ियों के बीच आपसी समझ, बच्चों की मानसिक स्थिति, बुजुर्गों की आवश्यकता आदि पर विचार विमर्श, उपेक्षित होते जा रहे हैं।

      जो सबसे ज्यादा चिंतनीय और भयभीत करने वाली बात यह है कि आज के दौर में आपस में, परिवार में, या बाजार में, राजनीतिक वाद-विवाद से रिश्तों में गंभीर दरार पड़ती हुई साफ दिख रही है।

     आज यह स्पष्ट दिख रहा है कि जब हर किसी को "राजनीतिक विशेषज्ञ" बनने की जल्दी हो, तब तर्कों को आरोपों द्वारा धराशाई किया जा रहा है।

     यहां तक कि परिवारों में विचारों का टकराव अब व्यक्तिगत कटुता का रूप ले रहा है। युवा पीढ़ी उद्वेलित है, बुजुर्गों की भावना आहत हो रही है। ऐसे में अब घर एक संगठित इकाई नहीं बल्कि एक विवाद-कक्ष बनता जा रहा है।

      इसलिए आज हम सबको नए सिरे से सोचने और समझने की जरूरत है कि सामाजिक सरोकार की ओर वापसी क्यों जरूरी है...?

    अब हम सभी को भविष्य में विकृत होते परिवार और समाज की आत्मा, जो आपसी संवाद, परंपरा और सहयोग में बसती है, उस पर गंभीर एवं दृढ़ संकल्प के साथ कुछ सिद्धांतों और विचारों को पुनर्स्थापित करने के लिए आगे आना होगा।

    अगर विचारों में सामाजिक चेतना नहीं होगी, तो व्यवहार में विकृति आएगी। परिवार और समाज, दोनों को जोड़ने के लिए हमें फिर से करुणा, संवेदना और समझदारी से वापस में संवाद करना होगा।

     उपरोक्त वास्तविकताओं को समझते हुए हम क्या करें..?, इस पर व्यावहारिक स्तर पर हम यहां कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं...

  1.  एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखें
  2.  आपस में संवाद के विषय बदलें | 
  3.  भोजन अवधि पर परिवारिक और सामाजिक मुद्दों पर  बात करें। 
  4.  राजनीति चर्चा से परे जाकर विचारों के विषयों को विविध बनाएं |
  5.  एक दूसरे के विचारों को सुनने की आदत डालें | 
  6.  सभी की बात ध्यान से सुनें।
  7.  बच्चों की सोच, बुजुर्गों की स्मृतियाँ और महिलाओं की दृष्टि को सम्मान दें |
  8.  परंपरा और संस्कृति को स्थान दें |   
  9.  धार्मिक कथा, लोकगीत, त्योहारों की तैयारी में परिवार को जोड़े रखें |
  10.  सामूहिक कार्य में हिस्सा लें| 
  11.  वृक्षारोपण पर योजना बनाकर विशेष प्रयास करें। 
  12.  वृद्धजनों की सेवा जैसे कामों में परिवार और समाज को जोड़ें |

      यकीन मानिए परिवार में राजनीतिक चर्चा बंद होने के पश्चात और उपरोक्त सुझावों पर यदि गंभीरता से नियमित अमल किया जाएगा तो निश्चय ही इसका पहला सकारात्मक प्रभाव आपको अपने परिवार में देखने को मिलेगा और यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उत्तरोत्तर में इसका असर पूरे सामाज पर पड़ेगा। 

       इन्हीं सिद्धांतों के ताना-बाना से ही परिवार समाज और हमारा राष्ट्र पुनः नई शक्ति, नई ऊर्जा के साथ शक्तिशाली बनेगा...

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                मनोज भट्ट, कानपुर 

                  २४ जुलाई २०२५

टिप्पणियाँ

  1. सारे बिन्दु विचारणीय और आचरण में लाने योग्य हैं. बिन्दु संख्या 8 एवं 9 में कुछ जोड़ना चाहता हूँ. परम्परा और संस्कृति यदि आज के परिदृश्य में समाज के लिए लाभ कारी है तो उसे जारी रखा जाना उचित होगा. अनेक रीति रिवाज, परंपराऔर धार्मिक क्रिया कलाप, आज के सन्दर्भ में यदि सुधार चाहते हैं, तो उन्हें परिष्कृत करने के लिए तैयार होना चाहिए. समय समय पर अनेक समाज सुधारको ने इस दिशा में कार्य किया है. जैसे सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह, बाल विवाह और सामाजिक अस्पृश्यता इत्यादि. आज भी सुधार की अनेक सम्भावनाएं हैं.

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