प्रार्थना और सपना: एक ईश्वरीय संवाद
एक शीतकालीन रात्रि में चारों ओर गहरा सन्नाटा, स्थिरता और मौन का साम्राज्य फैला हुआ था। किन्तु एक व्यक्ति, जो समाज का सामान्य-सा सदस्य था, अपने घर के छोटे से कक्ष में बेचैन होकर करवटें बदल रहा था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। उसकी आत्मा भीतर ही भीतर किसी उत्तर की खोज में भटक रही थी।
वह सोच रहा था कि "आखिर कब उसकी प्रार्थनाएँ पूरी होंगी। क्योंकि वह अपने देश की दिन पर दिन बढ़ती अराजक व्यक्स्था से दुखी था। वह प्रतिदिन ईश्वर से विनती करता कि हे ईश्वर !इस धरती पर एक ऐसा बालक जन्म ले, जो मेरे देश को गौरव प्रदान करे, जो अराजकता, अज्ञान और अन्याय के अंधकार को चीरकर सूर्य की तरह इस देश को विश्व में सर्वोच्च पायदान पर प्रतिष्ठित करे। परंतु अभी तक उसको कहीं भी ऐसा बालक नहीं दिखा जो समाज ओर देश को नया मजबूत धरातल दे सके।"
धीरे-धीरे उसकी पलकों पर नींद का बोझ उतर आया। उसी पल एक अद्भुत स्वप्न ने उसकी चेतना को अपने वश में कर लिया। स्वप्न में उसने देखा...
आकाश से एक दिव्य प्रकाश उतर रहा है। वातावरण में मधुर और गंभीर ध्वनि गूंज उठती है। यह किसी साधारण मनुष्य की आवाज़ नहीं थी, बल्कि ईश्वर की वाणी थी। उस वाणी ने उसकी आत्मा को संबोधित किया...
“हे मानव! तुम प्रतिदिन एक तेजस्वी बालक के लिए प्रार्थना करते हो। पर क्या तुम्हें ज्ञात है कि मैं प्रतिदिन एक ऐसे बालक को तुम्हारे समाज में भेजता हूँ ? वे हर दिन जन्म लेते हैं, उज्ज्वल, मासूम और संभावनाओं से भरे हुए।”
यह सुनकर वह व्यक्ति चकित हो उठा। उसने विनम्र स्वर में पूछा, “हे प्रभु! यदि ऐसा है तो, वह बालक कहाँ
है ? क्यों नहीं जगमगाता वह, सूर्य की भाँति ? क्यों हमारे देश और समाज का भविष्य अब भी अंधकार में डूबा हुआ प्रतीत होता है ?” दिव्य वाणी और गंभीर हो उठी...
“क्योंकि, हे मानव, तुम्हारा ही समाज उस बालक का तेज छीन लेता है। शैशवावस्था में वह भूख और गरीबी से जूझता है। बाल्यकाल में उसे शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है। किशोर होते-होते उसे बुरी आदतों और कुरीतियों की दलदल में धकेल दिया जाता है। और जब वह युवावस्था में कदम रखता है, तो अवसरों के अभाव में उसका आत्मविश्वास टूट जाता है। वही बालक, जो ईश्वर का दिया हुआ प्रकाश था, धीरे-धीरे बुझ जाता है।”
यह कहते ही स्वप्न में दृश्य बदल गया। उस व्यक्ति ने देखा, एक छोटा बालक, नंगे पाँव गलियों में भटक रहा है। कभी भूख से बिलखता, कभी अकेलेपन में आँसू बहाता, तो कभी दूसरों की उपेक्षा सहता हुआ। उसके हाथ में किताब होनी चाहिए थी, पर वहाँ टूटा-फूटा खिलौना था। उसके चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए थी, पर वहाँ थकान और निराशा थी।
उसी स्वप्न दृश्य में, समाज का प्रतीक भी प्रकट हुआ। लोग आए, कुछ शिक्षक, कुछ नेता, और बहुत-से साधारण नागरिक। वे कह रहे थे, “हम क्या करें ? हमारे पास समय नहीं है। हमने तो स्कूल बना दिए, योजनाएँ चला दीं। यदि बालक कुछ नहीं कर पा रहा तो यह उसकी अपनी नियति है।”
तभी ईश्वर की वाणी क्रोध और करुणा से गूँज उठी...
“नहीं ! यह केवल उसकी नियति नहीं, यह तुम्हारा सामूहिक अपराध है। यदि तुम्हारा समाज बालक को प्रेम, शिक्षा और नैतिकता का वातावरण नहीं देगा, तो उसका प्रकाश कभी पूर्णता तक नहीं पहुँच पाएगा। हर बालक में ईश्वर का अंश होता है, पर उसे पहचानना और पोषित करना तुम्हारे हाथ में है।”
स्वप्न में इतना सुनते ही वह व्यक्ति भीतर तक हिल गया। उसके हृदय में आत्मचिंतन की गहन लहर उठी। वह समझ गया कि केवल प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं है। ईश्वर से मांगने के साथ-साथ कर्म करना भी आवश्यक है।
उसने दृढ़ स्वर में कहा, “हे प्रभु! आपके तेजस्वी संदेश ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया है। अब मैं केवल प्रार्थना नहीं करूँगा, मैं कर्म करूँगा। मैं समाज को जगाऊँगा, मैं बच्चों को अवसर दूँगा, और हर बालक को उसकी नियति तक पहुँचने में सहायक बनूँगा।”
जैसे ही उसने यह प्रतिज्ञा की, स्वप्न दृश्य पुनः बदल गया। वही समाज, जो अब तक उदासीन था, धीरे-धीरे रूपांतरित होने लगा। शिक्षक अब केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि प्रेरणा देने वाले बने। नेता केवल भाषण देने वाले नहीं, बल्कि सच्चे मार्गदर्शक बने। नागरिक केवल दर्शक नहीं, बल्कि संरक्षक और सहयोगी बने।
अब स्वप्न में वही बालक पुनः आया। किंतु इस बार उसका चेहरा बदला हुआ था। उसकी आँखों में आत्मविश्वास की चमक थी। उसके हाथ में किताब थी, और उसके आसपास शिक्षक तथा समाज के लोग खड़े थे, जो उसे संबल दे रहे थे। बालक ने मुस्कराते हुए कहा, “अब मुझे डर नहीं लगता। अब मेरे पास शिक्षा है, मेरे पास शिक्षक हैं, और मेरे सपनों को पूरा करने का साहस है।”
इस दृश्य को देखकर व्यक्ति की आँखों से आँसू बह निकले। उसने अनुभव किया कि सचमुच एक प्रार्थना ने एक आंदोलन को जन्म दे दिया है। एक स्वप्न ने पूरे समाज को बदलने की शक्ति भर दी है।
“और इस प्रकार, एक साधारण मनुष्य की बेचैनी ने पूरे समाज को हिला दिया। एक प्रार्थना ने कर्म का मार्ग दिखाया। और एक ऐसा बालक, जो खोने वाला था, अब देश का भविष्य बन गया। यह वही क्षण था, जब सपना वास्तविकता में बदल गया।”
धीरे-धीरे वह व्यक्ति गहरी नींद में समा गया और पुनः उसी स्वप्न में देखता है कि पूरा समाज, बालक, शिक्षक, और वह स्वयं नायक की भूमिका में एक जगह एकत्र हुए और सभी ने मिलकर समवेत स्वर में उद्घोष किया...
“हे समस्त मानव ! आओ सब मिल कर प्रार्थना करो, परन्तु साथ ही कर्म भी करो। हर बालक में ईश्वर का तेज छिपा है। उसे पहचानो, उसका पोषण करो, और उसकी उड़ान को दिशा दो।”
स्वप्न मे इसी संदेश के साथ दिव्य संगीत बज उठा। वातावरण में “ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:” की गूँज फैल गई...और सभी के हृदय में यह संदेश गहरे अंकित हो गया कि समाज का वास्तविक भविष्य उसके बच्चों में है...
https://manojbhatt63.blogspot.com
पढ़ने के लिए धन्यवाद...🙏
No comments:
Post a Comment
“आपकी टिप्पणी हमारे लिए अमूल्य है – कृपया विचार साझा करें।”