
"गुप्तरोग" की परिभाषा में "मनोरोग" का कब्जा
आज के समय में जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने असाध्य समझी जाने वाली तमाम बीमारियों का भी इलाज ढूंढ निकाला है, तब एक गुप्त रोग ऐसा भी है जो वैश्विक स्तर पर दिन-प्रतिदिन महामारी का रूप लेता जा रहा है। जिसे लोग पहचानने से कतराते हैं, समझने में देर करते हैं और स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं। वह गुप्तरोग है..." मनोरोग "
मनोरोग: समझ और भ्रांतियां
समाज में मानसिक रोगों के प्रति जानकारी का अभाव के साथ-साथ उसके प्रति तमाम भ्रांतियों ने अपनी गहरी पैठ बना ली है। जबकि मानसिक रोग कोई कमजोरी नहीं बल्कि एक सामान्य इलाज योग्य स्थिति है। फिर भी आज समाज में इसे लेकर तमाम तरह का डर और भ्रांतियां बनी हुई हैं।
{ हर मानसिक रोगी पागल नहीं होता किंतु, किसी को "पागल" कह देना आसान है, समझना कठिन, मगर जरूरी है। जैसे शरीर बीमार होता है, वैसे ही मन भी बीमार होता है। }
ज़रूरत है सहानुभूति की, सही जानकारी और उपचार की। आइए, मानसिक स्वास्थ्य को भी उतनी ही प्राथमिकता दें जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं।क्योंकि स्वस्थ मन ही, सशक्त जीवन की नींव है।
क्या है मनोरोग...?
मनोरोग (Mental Illness) वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति के सोचने, महसूस करने, व्यवहार करने और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
- डिप्रेशन (अवसाद)
- एंग्जायटी डिसऑर्डर (चिंता विकार)
- बाइपोलर डिसऑर्डर
- सिज़ोफ्रेनिया
- ओसीडी
- डिमेंशिया, अल्ज़ाइमर
- PTSD आदि
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
- WHO के अनुसार, भारत में 15 करोड़ से अधिक लोग किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। ये आंकड़ा कहीं ज्यादा हो सकता है, क्योंकि यह गुप्त रोग है।
- NIMHANS की रिपोर्ट- - हर 7वां भारतीय, किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है।
- बच्चों, महिलाओं और वृद्धों में विशेष रूप से चिंता और अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं।
सामाजिक नजरिया और चुप्पी, एक कलंक
यहां पर सर्वप्रथम यह स्पष्ट रूप से जानना समझना होगा कि मनोरोगों के बहुत से प्रकार होते हैं किंतु दुर्भाग्य से हमारे समाज में यदि किसी के विषय में उसके मनोरोगी होने का पता चलता है, तो लोग सीधे उसे "पागल"करार देते हैं और तो और मनोरोग चिकित्सक को पागलों के डॉक्टर की संज्ञा देते हैं।
मनोरोगियों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है कि लोग इन रोगों को कमजोरी समझते हैं जबकि ये वैज्ञानिक और चिकित्सा की दृष्टि से गंभीर किंतु इलाज योग्य स्थितियां हैं।
समाज में इसके प्रति जागरूकता का अभाव, चुप्पी, उपेक्षा और मानसिक रोगों को 'गुप्त' रखने की प्रवृत्ति, इस रोग को विकराल बनाती है। जो पूरे विश्व में एक महामारी का रूप लेती जा रही है।
अब मनोरोगों के इलाज के लिए अनेक निम्न विकल्प मौजूद हैं जिससे उम्मीद की रोशनी झलकती है....
- मनोचिकित्सा (Psychotherapy)
- दवाएं
- योग और ध्यान
- पारिवारिक परामर्श
- Support Groups
भारत सरकार की पहल ने भी इस क्षेत्र में संरक्षक की भूमिका निभाते हुए मनोरोगियों के प्रति उनकी देखभाल करने हेतु कानूनी प्रावधान की व्यवस्था करी है...
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017
- Tele-MANAS हेल्पलाइन
- AIIMS, NIMHANS जैसी संस्थाओं की सेवाएं
हमें मानसिक रोगों पर खुलकर बात करने की आदत विकसित करनी होगी। एक मानसिक रोगी हमारी दया नहीं, हमारी समझ और साथ का हकदार है। मनोरोगियों के प्रति हम सभी को सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण रखना चाहिए। इससे रोगी और उसके इलाज में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।
“ मानसिक रोगी वह नहीं जो पीड़ित है, मानसिक रोगी वो है जो उसकी सच्चाई को समझने से डरता है, छुपाता है। "
हमेशा ध्यान देने वाली बात है कि मानसिक स्वास्थ्य ही सामाजिक स्वास्थ्य है। अगर हम मानसिक रोगों को समझने, उन्हें स्वीकार करने और इलाज कराने की संस्कृति को अपनाते हैं, तो न केवल एक व्यक्ति बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र को खोखला करने वाली यह महामारी रोकी जा सकती है....
“यदि आपके आसपास कोई व्यवहार में बदलाव, अवसाद या अकेलेपन से जूझ रहा है , उनसे बात कीजिए। मानसिक स्वास्थ्य शर्म का विषय नहीं, समझ का विषय है।”
लेखक: मनोज कुमार भट्ट
ब्लॉग: ताना-बाना – जीवन, परिवार और समाज पर लेख
यूँ तो मनोरोग शिक्षित, धनी और अभिजात्य वर्ग में भी तीव्र गति से पैर पसार चुका है, क्योंकि एक सफ़ल जीवन की परिभाषा को हमने भौतिकतावाद से जोड़ दिया है. पद, प्रतिष्ठा, धन संग्रह, कामुकता और विलासितापूर्ण जीवन की चाह ने हमें मशीन बना कर रख दिया है. इन क्षेत्रों में जब हमें असफलता हाथ लगती है तो हम गहरे अवसाद में चले जाते हैं और मनोरोगी होने की दिशा में बढ़ जाते हैं. दूसरी ओर समाज का अशिक्षित, निर्धन और पिछड़ा वर्ग है. ये वर्ग विशेषकर इनकी महिलायें दबी कुचली अपनी हर समस्या का हल पूजा पाठ, बाबाओं, तांत्रिकों और पीर फकीरों के पास ढूँढती हैं. ज़्यादातर भूत प्रेत और देवियाँ ऐसे वर्गों की महिलाओं पर अधिक आते हैं. वस्तुतः ये भी मनोरोगी ही होती हैं और अपनी कुंठा और आक्रोश को बाहर निकालने का सबसे सरल माध्यम अन्ध विश्वास को बनाती हैं. विभिन्न धर्मों के एजेन्ट इनका शोषण करते हैं और अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं. ऐसे लोग भी मनोरोगी की ही श्रेणी में आते हैं.
जवाब देंहटाएंश्रीवास्तव जी सर्वप्रथम आपने जो टिप्पणी की है वह बिल्कुल प्रासंगिक है। यहां पर मैं एक चीज और भी स्पष्ट कर दूं कि शोध द्वारा जो चीज सामने आई है उसमें यह निष्कर्ष निकला है कि आधुनिक समाज में भौतिकतावाद, अत्यंत महत्वाकांक्षी होना, स्थितियों को स्वीकार न करना, दूसरों से अत्यधिक अपेक्षा करना और भी बहुत तरह के कारण जैसे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भी हमारा परिवार, हमारा समाज उसके प्रभाव से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है। इसी वजह से इस तरह की मानसिक बीमारियां अपनी जगह बना रही है। यह अलग बात है कि अधिकांश लोग इससे अपरिचित रहते हैं, कुछ सामना कर पाते हैं और कुछ असफल हो जाते हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य भी सिद्ध हो चुका है कि जब शिशु गर्भावस्था से बाहरी दुनिया में आता है उस वक्त से उसकी मनःस्थिति पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। सर्वप्रथम जब वह बच्चा बाहरी दुनिया में आया तो उसको किस तरह का स्पर्श मिला, प्यार भरा, "नरम या सख्त का एहसास"... उसकी आगे की मानसिक स्थिति का आधार बनती है। वह सकारात्मक हो सकता है और नकारात्मक भी...🙏
हटाएंTheek kaha. Aapne ki isko log samjhte samjhte kafi der kar dete hai aur rogi ki condition aur badtar ho jati hai ham sabko samjhne ki jarurat hai ki ham apne aas pa's Ghar me agar aisa kuch pate hai to hame batane ki jarurat hai sahi disha me chalne ke liye motivate karna chahiye
जवाब देंहटाएंपूरी दुनिया में अगर कोई रोग, बड़ी तेजी से, लेकिन गुपचुप तरीके से लोगों को अपनी जकड़ में लेता जा रहा है, तो वह है मनोरोग।शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि शैशवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हर आयु, हर लिंग के लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसीलिए समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। क्योंकि अधिकांश लोगों को समय रहते यह पता नहीं चलता है कि वह किसी मनोरोग स्थिति की गिरफ्त में आ चुका है। यह उस व्यक्ति के करीब, सभी की जिम्मेदारी है कि ऐसी स्थिति को पहचाने और शीघ्र निदान हेतु सर्वप्रथम परिवार के ही अंदर इस समस्या से निराकरण करने के लिए माहौल बनाएं। यदि स्थिति उससे ऊपर की है तो निश्चय ही मानसिक रोग चिकित्सक से संपर्क अवश्य करें।अन्यथा विलंब होने की स्थिति में विभिन्न तरह की अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ता है। आपकी टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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